आस्था पर भारी पड़ी लापरवाही
नवरात्र के मौके पर पिछले हफ्ते 13 अक्तूबर को दतिया जिले के रतनगढ़ माता मंदिर में पूजा करने जा रहे श्रद्धालुओं ने सोचा भी न होगा कि यह उनकी आखिरी यात्रा साबित होगी. उनकी आस्था पर भीड़, भगदड़ और प्रशासनिक लापरवाही भारी पड़ी. नवरात्र में हर साल यहां लाखों श्रद्धालु उमड़ते हैं. इस बार सिंध नदी पर बने पुल से श्रद्धालु गुजर रहे थे तो भगदड़ मच गई और 116 लोग मारे गए. नवंबर में विधानसभा चुनाव के वक्त हुए इस हादसे से सियासत गरम है. मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान विपक्ष के निशाने पर हैं.
हादसे के बाद मुख्यमंत्री से लेकर विपक्षी नेता ज्योतिरादित्य सिंधिया समेत सभी नेताओं में घायलों से मिलने की होड़ मच गई. इस भयानक हादसे के लिए पुलिस को ही जिम्मेदार माना जा रहा है. एक प्रत्यक्षदर्शी मंगल सिंह बताते हैं, ”पुल पर ट्रैक्टरों की वजह से जाम लगा और भगदड़ मची. पुलिस ने लाठीचार्ज भी कर दिया. बदहवास लोग नदी में गिरने लगे. कई तो पुल पर भी कुचलकर मारे गए. ” घायलों को देखने पहुंचे मुख्यमंत्री को एक घायल मनोहर सिंह पाल ने बताया, ”भीड़ के बावजूद पुलिस 200 से 300 रु. लेकर ट्रैक्टरों को पुल से गुजरने दे रही थी. जाम हटाने के लिए पुलिस ने ही अफवाह फैला दी कि पुल टूटने वाला है. ” पुलिस क्रूरता पर भी उतर आई. दतिया जिले के भगुवापुरा गांव के भरत लोहपीटा कहते हैं, ”जब वे लाशों में अपने बेटे को खोजने पहुंचे तो पुलिसवाले महिलाओं की लाशों से गहने नोंच रहे थे. ” प्रत्यक्षदर्शियों का आरोप है कि मृतकों की संख्या छिपाने के लिए पुलिस लाशों को नदी में फेंक रही थी.
हादसे के समय कोई भी बड़ा प्रशासनिक अधिकारी मौजूद नहीं था. लाखों की भीड़ को सिर्फ 40-50 पुलिसकर्मियों के जिम्मे छोड़ दिया गया था. जबकि चंबल रेंज के आइजी ने स्पेशल फोर्स की दो कंपनियां रतनगढ़ भेजी थीं, जिसके जवान जिला मुख्यालय में ही बैठे रह गए. दतिया के कलेक्टर संकेत भोंडवे छुट्टी पर थे और एसपी चंद्रशेखर सोलंकी ही नहीं, संबंधित अतरेटा थाने के प्रभारी तक ने इंतजाम का जायजा लेना मुनासिब नहीं समझा था. अब प्रशासन बता रहा है कि वहां करीब चार लाख की भीड़ जमा थी.
मुख्यमंत्री ने कहा है कि न्यायिक आयोग की रिपोर्ट आने के 15 दिन के भीतर दोषियों पर कार्रवाई की जाएगी. लेकिन वे इस बात का जवाब नहीं दे सके कि 1 अक्तूबर, 2006 में भी इसी मंदिर के पास हुए हादसे की रिपोर्ट अभी तक क्यों नहीं सामने रखी गई है? उस समय भी नवरात्र के ही अवसर पर सिंध नदी को नाव से पार करते हुए श्रद्धालु अचानक शिवपुरी के मणिखेड़ा बांध से छोड़े गए पानी की चपेट में आ गए थे और 50 से ज्यादा लोगों की मृत्यु हुई. उस समय वहां कोई पुल नहीं था. मुख्यमंत्री चौहान ने तब भी न्यायिक आयोग की जांच बैठाई थी और जस्टिस एस.के. पांडे ने छह माह के भीतर अपनी रिपोर्ट सरकार को सौंप दी थी. सरकार ने अभी तक उसे सार्वजनिक नहीं किया है.
सिंधिया ने इसे सिस्टम का ब्रेक डाउन करार दिया, ”सात वर्ष पुरानी रिपोर्ट को सरकार दबाए बैठी है. पिछले हादसों से कोई सबक नहीं लिया. ” प्रदेश सरकार ने मृतकों के परिजनों को डेढ़-डेढ़ लाख रु. मुआवजे की घोषणा की है, जबकि उत्तर प्रदेश सरकार ने इसी हादसे में अपने राज्य के मृतकों के लिए प्रति व्यक्ति दो लाख रु. मुआवजे का ऐलान किया है. चुनाव आयोग से अनुमति लेकर दतिया के डीएम, एसपी, एसडीएम, एसडीओपी और थानाध्यक्ष वगैरह को निलंबित कर दिया गया है. पर सरकार इससे कितना सबक लेगी और दोषियों पर क्या कार्रवाई करेगी, इस पर प्रश्नचिन्ह लगा.